भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने देश की अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला लेते हुए रेपो रेट में 25 बेसिस पॉइंट की बड़ी कटौती कर दी है, जिससे नई दर 5.25% हो गई है। यह फैसला पूरी तरह से सर्वसम्मति से लिया गया, जो दर्शाता है कि मॉनेटरी पॉलिसी कमिटी (MPC) के सभी छह सदस्य ब्याज दरें घटाने के पक्ष में थे।
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बताया कि पिछले कुछ महीनों में महंगाई तेज़ी से नीचे आई है और अब यह केंद्रीय बैंक के तय आरामदायक दायरे से भी कम हो चुकी है। वहीं, देश की आर्थिक वृद्धि मजबूत बनी हुई है। महंगाई कम और ग्रोथ तेज़ होने के इस संयोजन ने केंद्रीय बैंक को पॉलिसी को नरम करने का अवसर दिया।
बाज़ार में नकदी बढ़ाने के लिए RBI की बड़ी चाल
रेपो रेट घटाने के साथ-साथ, RBI ने यह सुनिश्चित करने के लिए बाज़ारों में नकदी (लिक्विडिटी) बढ़ाने के दो बड़े उपायों का ऐलान किया है कि दरों में कटौती का फायदा जल्दी और पूरी तरह ग्राहकों तक पहुँच सके।
RBI ने सिस्टम में पैसे की उपलब्धता आसान बनाने के लिए कुल ₹5,50,000 करोड़ की लिक्विडिटी डालने की घोषणा की है:
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₹1 लाख करोड़ के बॉन्ड खरीदना (OMOs): ओपन मार्केट ऑपरेशन्स (OMOs) के तहत RBI इतनी राशि के सरकारी बॉन्ड खरीदेगा, जिससे बैंकिंग सिस्टम में सीधे तौर पर पैसा आएगा।
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₹4,50,000 करोड़ का फॉरेक्स स्वैप: यह एक अस्थाई उपाय है जिससे बाज़ार में भारी नकदी आती है।
जब बैंकिंग सिस्टम में पैसा अधिक होता है, तो लोन सस्ते होते हैं, नई फंडिंग बढ़ती है, और कंपनियों तथा घरों दोनों को राहत मिलती है, जो आर्थिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करता है।
RBI डॉलर-रुपया स्वैप क्यों कर रहा है?
फॉरेक्स स्वैप (विदेशी मुद्रा अदला-बदली) एक ऐसा तरीका है जिसमें RBI, रुपये पर दीर्घकालिक असर डाले बिना, सिस्टम में रुपये की आपूर्ति बढ़ा सकता है।
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प्रक्रिया: इस स्वैप के तहत RBI अभी डॉलर बेचेगा और बदले में रुपये बैंकिंग सिस्टम में डाल देगा। बाद में, एक तय समय पर, RBI वापस डॉलर खरीद लेगा।
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उद्देश्य: इस प्रक्रिया से बाज़ार में अस्थाई रूप से भारी लिक्विडिटी आती है।
यह कदम खासकर तब उपयोगी होता है जब रुपये पर दबाव होता है। हाल ही में रुपये ने ₹90.42 के रिकॉर्ड निचले स्तर को छुआ था। ऐसे में, डॉलर-रुपया स्वैप रुपये को सहारा देने का काम करता है और अचानक होने वाली गिरावट को रोकने में मदद करता है।
बाज़ारों की प्रतिक्रिया
RBI की घोषणाओं के बाद बॉन्ड मार्केट ने तुरंत सकारात्मक प्रतिक्रिया दी। 10 साल की सरकारी बॉन्ड यील्ड गिरकर 6.51% पर आ गई, जो निवेशकों के बीच ब्याज दरों के कम होने के भरोसे को दर्शाती है।
हालांकि इक्विटी बाज़ार (Stock Market) पूरी तरह शांत रहा और निफ्टी 50 में बड़े बदलाव देखने को नहीं मिले। इससे साफ है कि फिलहाल बाज़ार की नज़र रेपो रेट के बजाय रुपये और लिक्विडिटी की स्थिति पर ज्यादा टिकी है। पॉलिसी मीटिंग से पहले भारत के उम्मीद से मजबूत GDP आँकड़ों और रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर को छूने की वजह से ट्रेडर पहले ही सतर्क हो चुके थे।